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Friday, March 19, 2010

"ज़ेन, अर्थात चोर को चन्द्रमा का उपहार" : द्वितीय संस्करण

सुदूर अंचल की एक सुनहरी शाम और काम से घर लौटता तीतु गोंड ! आज वह खुश है कि बहुत दिनों बाद बच्चों को भरपेट चावल नसीब होंगे !
झोंपड़ी में पहुंचा तो पाया सब ओर मुर्दनी छाई है! पूछने पर पत्नी ने बताया 'सरकार' ने सब को जंगल छोड्ने
का हुक्म जारी किया है! "माँ कहाँ है?" तीतु ने पूछा ! "सास को जंगल से लकड़ियाँ चुराने के जुर्म में 'सरकार' ने कैद कर लिया है!"
दिनभर के काम से देह दुःख रही थी पर आँखों से नींद नदारद ! देर रात झोंपड़ी के बाहर चट्टान पर बैठा तीतु पूरे खिले चाँद को निहारते हुए क्या सोचता है?

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6 Comments:

  • At 25/3/10 2:56 PM, Blogger pritika said…

    Ravinder, Zen Kahaniyan achhi hai kyunki ye chaand ka ahsaas dilatien hain; kaam ki baatoon ke beech ya raat ke saanaate mein koi chaand se kyun baateein karta hai? shaayad insaaniyat ke hone ka praman hai. Aur chand to ek hi hai fir ham sab apne liye ek chaand bun letein hai. 'Chand chahiye' ya 'chand ko chahna' do alag-alag batein hai. (need/desire) pata nahi chor ko kya chahiye par uski niyat saaf hai ki vo churana chahta hai aur sadhna karne vale log svayam ko bhula kar bhi 'svyam'(self/ves)ke bare mein hi sochte hai. Par fir bhi uska koi jawaab nahi..aisa koi jo chor ko chand se mila sakein aur vo bhul jaye ki kuch aur churane layek bhi ho sakta hai; apni insaaniyat ki hadd se zyada badh jaane ki tamaana, fir baki sab to bahane hai us chaand tak pahuchne ke; jaise ki zen monks kehte hai chaand ko koi nahi chura sakta..use sirf mehsus kar saktein hain..par jeene ke liye isse achha eraada bhi kya ho sakta hai :)

     
  • At 6/4/10 10:10 PM, Blogger Unknown said…

    very thoughtful yaar... i really like this kind of stuff. U guys are writing good stuff.

     
  • At 10/4/11 3:28 AM, Anonymous Anonymous said…

    रविंदर , ज़ेन कहानियां अच्छी है क्यूंकि ये चाँद का एहसास दिलाती हैं ; काम की बातों के बीच या रात के सन्नाटे में कोई चाँद से क्यों बातें करता है ? शायद इंसानियत के होने का प्रमाण है. और चाँद तो एक ही है फिर हम सब अपने लिए एक चाँद बुन लेते हैं . 'चाँद चाहिए ' या 'चाँद को चाहना ' दो अलग -अलग बातें है . (need /desire ) पता नहीं चोर को क्या चाहिए पर उसकी नियत साफ़ है कि वो चुराना चाहता है और साधना करने वाले लोग स्वयं को भुला कर भी 'स्वयं ' (self/ves)के बारे में ही सहते है . पर फिर भी उसका कोई जवाब नहीं ..ऐसा कोई जो चोर को चाँद से मिला सके और वो भूल जाये कि कुछ और चुराने लाएक भी हो सकता है ; अपनी इंसानियत कि हद्द से ज्यादा बढ़ जाने की तमन्ना , फिर बाकि सब तो बहाने है उस चाँद तक पहुचने के ; जैसे कि ज़ेन साधू कहते है चाँद को कोई नहीं चुरा सकता ..उसे सिर्फ महसूस कर सकतें हैं ..पर जीने के लिए इससे अच्छा इरादा भी क्या हो सकता है :)

     
  • At 29/4/11 10:46 AM, Blogger pritika said…

    This comment has been removed by the author.

     
  • At 29/4/11 10:49 AM, Blogger pritika said…

    Dear Anonymous, Thank you very much ('3:28 AM' ko 'raat ka sannata'kahein ya fir savera)haha :):)

     
  • At 29/4/11 10:49 AM, Blogger pritika said…

    This comment has been removed by the author.

     

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